कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी
कृपा की ना होती जो,
आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती,
अदालत तुम्हारी ||
जो दिनों के दिल में,
जगह तुम न पाते,
तो किस दिल में होती,
हिफाजत तुम्हारी।
कृपा की ना होती जों,
आदत तुम्हारी ||
ना मुल्जिम ही होते,
ना तुम होते हाकिम,
ना घर घर में होती,
इबादत तुम्हारी।
कृपा की ना होती जों,
आदत तुम्हारी ||
ग़रीबों की दुनिया है,
आबाद तुमसे,
ग़रीबों से है,
बादशाहत तुम्हारी।
कृपा की ना होती जों,
आदत तुम्हारी ||
तुम्हारी उल्फ़त के,
द्रग (बिन्दु) हैं ये,
तुम्हें सौंपते है,
अमानत तुम्हारी।
कृपा की ना होती जों,
आदत तुम्हारी ||
कृपा की ना होती जो,
आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती,
अदालत तुम्हारी ||
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