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शरद पूर्णिमा व्रत कथा एवं पूजन विधि

Sharad Purnima Vrat Katha Avm Pujan Vidhi Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| शरद पूर्णिमा की पूजा विधि ||

  • शरद पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी, तालाब या सरोवर में स्नान करें।
  • अगर आस-पास नदी या तालाब नहीं है तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • अगर व्रत रख रहे हैं तो स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद पूजा वाली जगह को साफ़ करें और वहां अपने आराध्य देव की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद भगवान को सुंदर वस्त्र, आभूषण इत्यादि पहनाएं।
  • फिर भगवान को वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित करें।
  • इसके बाद विधि विधान पूजा करें।
  • फिर रात में गाय के दूध से खीर बनायें और उसमें घी और चीनी मिलाकर भोग लगाएं।
  • फिर मध्य रात्रि में इस खीर को चांद की रोशनी रख दें।
  • फिर दूसरे दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में वितरित करें।
  • अगर शरद पूर्णिमा पर व्रत रख रहे हैं तो कथा जरूर सुनें।
  • कथा पढ़ने या सुनने से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें फिर दक्षिणा चढ़ाएं।
  • इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।

|| शरद पूर्णिमा का महत्व ||

  • शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत की वर्षा होती है क्योंकि उस समय चंद्रमा अपने 16 कलाओं से युक्त होकर अमृत वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे खीर रखते हैं और उसमें चंद्रमा की अमृत गुणों से युक्त किरणें पड़ती हैं, जिससे वह खीर अमृत के समान स्वास्थ्यवर्द्धक हो जाती है.
  • शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करते हैं, इससे जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है. चंद्रमा को अर्घ्य देने से कुंडली का चंद्र दोष दूर होता है.
  • शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी व्रत और पूजा करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हुई यह पूछती हैं कि कौन जाग रहा है? इस वजह से शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं.
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था, जिसके कारण शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं.

|| शरद पूर्णिमा व्रत कथा ||

एक साहूकार के दो पुत्रियां थी. दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी| परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी|

उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है. फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं|

साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया. फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया. तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढ़क दिया. फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया|

बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया|

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