वामन जयंती पूजा विधि
- इस दिन भगवान विष्णु को उनके वामन रूप में पूजा जाता है। इस दिन उपासक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। नित्यक्रिया के बाद स्नान और भगावन विष्णु का ध्यान कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए।
- इसके बाद दिन की शुरुआत में आप वामन देव की सोने या फिर मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा करें।
- इस दिन उपवास का भी विशेष महत्व बताया गया है, इसलिए भक्त भगवान विष्णु के अवतार वामन देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रखते हैं।
- इस दिन पूजा करने का सबसे उत्तम समय श्रवण नक्षत्र होता है। श्रवण नक्षत्र में भगवान वामन देव की सोने या फिर मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा के सामने बैठकर वैदिक रीति-रिवाजों से पूजा संपन्न करें।
- इस दौरान भगवान वामन देव की व्रत कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए।
- कथा के समापन के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसादी वितरण करना चाहिए, इसके बाद ही उपवास खोलना लाभकारी होगा।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल, दही और मिश्री का दान करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
- इस दिन भक्त वामन देव की पूजा पूरे वैदिक विधि और मंत्रों के साथ करते हैं, तो उनके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है, अर्थात भगवान वामन अपने उपासकों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
वामन अवतार कथा
प्राचीन काल में एक बलि नाम का दैत्य राजा था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपने बल और तप की बदौलत पूरे ब्रह्मांड पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त और अत्यन्त बलशाली बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग को भी जीत लिया था। तब इंद्र भगवान विष्णु के पास आए, और उन्होंने अपना राज वापस दिलाने की प्रार्थना की।
इसके बाद भगवान विष्णु ने इंद्र को आश्वासन दिया, वह इनका अधिकार वापस दिलाकर रहेंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोग पर इंद्र के अधिकार को वापस दिलाने के लिए वामन अवतार लिया। उन्होंने ॠषि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया। राजा बलि भगवान विष्णु का परमभक्त तो था, लेकिन वह एक क्रूर और अभिमानी शासक भी था।
राजा बलि ने हमेशा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया, वह हमेशा अपने बल और शक्ति से देवताओं और लोगों को डराया-धमकाया करता था। उसने अपने पराक्रम की बदौलत तीनों लोकों को जीत लिया था।
एक दिन जब राजा बलि अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहा था, तब श्रीहरि विष्णु वामन अवतार में उसके घर पहुंच गए। उस समय वहां पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थी। जैसे ही शुक्रचार्य ने वामन को देखा, वह तुरंत ही समझ गए कि यहां विष्णु है।
शुक्राचार्य ने राजा बलि को बुलाकर उन्हें कहा कि यहां विष्णु वामन रूप में पहुंच चुके हैं, वहां तुमनें संकल्प करवाकर कुछ भी मांग सकते हैं, तो मुझ से बिना पूछे उन्हें कुछ मत देने का वचन मत देना, लेकिन राजा बलि ने इस बात को अनसुना कर दिया। तभी वामन देव राजा बलि के पास आए, और कुछ मांगने की इच्छा जाहिर की था।
राजा बलि वह बहुत दानवीर भी था, उसने वामन को दान देने का वचन दे दिया। इस बीच शुक्राचार्य ने उन्हें वचन न देने इशारा भी किया, लेकिन वह नहीं माने और उन्हें वामन देव को वचन दे दिया।
राजा के मुख से मुंह मांगा दान पाने का वचन मिलते ही, उन्होंने राजा बलि से तीन पग धरती की याचना की। राजा बलि सहर्ष वामन देव की इच्छा पूर्ति करने के लिये सहमत हो गये। राजा बलि के सहमत होते ही वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया। इन्होंने एक पग में पूरे भू लोक नाप दिया, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया।
वामन रूपी श्रीहरि विष्णु ने जब तीसरा पग उठाया, तो राजा बलि श्रीहरि विष्णु को पहचान गया, और उसने अपना शीश वामन देव के सामने प्रस्तुत कर दिया। वह भगवान विष्णु का परमभक्त भी था, तो उन्होंने बलि की उदारता का सम्मान किया, और उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक भेज दिया।
इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वीलोक पर आ सकता है। दक्षिण भारत में ऐसा माना जाता है कि राजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आता है। इस दिन को ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के नाम से भी मनाया जाता है।
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