Download HinduNidhi App
Tulsi Mata

राक्षस कुल से देवी कैसे बनी तुलसी माता? जानें रहस्य

Tulsi MataHindu Gyan (हिन्दू ज्ञान)हिन्दी
Share This

तुलसी माता, जिन्हें वृंदा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा और देवी हैं। भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होने के कारण, उन्हें “विष्णुप्रिया” और “लक्ष्मीप्रिया” भी कहा जाता है। तुलसी माता का जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन उनका जीवन सदैव भक्ति और पतिव्रता का रहा।

भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं का उत्सव, पूजा-अर्चना, और कथाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण देवी हैं तुलसी माता। तुलसी का नाम हमेशा पवित्रता और प्रेम के साथ जुड़ा है। तुलसी माता, राक्षस कुल से जन्मी एक पतिव्रता स्त्री, जो अपनी भक्ति और त्याग के कारण देवी बन गईं, हिंदू धर्म में सदैव पूजनीय रहेंगी।

कौन थीं वृंदा?

वृंदा, जिन्हें बाद में तुलसी माता के नाम से जाना गया, का जन्म राक्षस कुल में दानवेन्द्र मलयवज के घर हुआ था। बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त वृंदा, बड़ी होने पर दानवराज जलंधर से विवाहित हुईं। वे बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा एक आदर्श पत्नी थीं और अपने पति जलंधर के प्रति अत्यंत समर्पित थीं।

जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ, तब जलंधर भी युद्ध में शामिल हुआ। युद्ध पर जाने से पहले, वृंदा ने अपने पति की रक्षा के लिए कठोर व्रत लिया।

जलंधर का अत्याचार और वृंदा का व्रत

जलंधर अत्यंत शक्तिशाली और क्रूर दानव था। उसने देवताओं और ब्राह्मणों को सताना शुरू कर दिया। देवता पराजित होकर भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाने लगे।

भगवान विष्णु जानते थे कि जलंधर को केवल उसी स्त्री द्वारा पराजित किया जा सकता है जो पूर्ण रूप से पतिव्रता हो। इसलिए, उन्होंने वृंदा का रूप धारण कर जलंधर को मार गिराया। देवता युद्ध में जलंधर को हरा नहीं पा रहे थे। उन्होंने भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए।

जब वृंदा ने “जलंधर” को देखा, तो उन्होंने तुरंत अपना व्रत तोड़ दिया। उनके व्रत के टूटते ही, देवताओं ने असली जलंधर का वध कर दिया

वृंदा का श्राप और तुलसी का जन्म

जब वृंदा को पता चला कि उनके पति को मारने वाला कोई और नहीं बल्कि उनके प्रिय भगवान विष्णु थे, तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएं।

भगवान विष्णु ने वृंदा को समझाया और उनसे क्षमा मांगी।

वृंदा ने भगवान विष्णु को क्षमा कर दिया, लेकिन उन्होंने श्राप वापस नहीं लिया।

उन्होंने कहा कि वे पत्थर के रूप में शालिग्राम के रूप में पूजे जाएंगी और वे स्वयं तुलसी के पौधे के रूप में भगवान विष्णु की पूजा में सदैव उपस्थित रहेंगी।

तुलसी माता का महत्व

तुलसी माता को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। उनके पत्तों का उपयोग भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है। तुलसी का पौधा घर में रखना शुभ माना जाता है। तुलसी के पत्ते औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं और इनका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है।

तुलसी माता का महत्व हमारे समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में पूजा जाता है। वैदिक साहित्य में तुलसी का उल्लेख बहुतायत है।

तुलसी के पौधे का पूजन और उसके पत्तों का उपयोग हमारे धार्मिक आध्यात्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व होता है। इसके लाभ भी अनेक होते हैं, जैसे कि वास्तुशास्त्र में तुलसी के पौधे का महत्व, आयुर्वेद में इसके चिकित्सीय लाभ आदि।

तुलसी के पौधे को लेकर हमारे समाज में विश्वास और भक्ति की भावना जुड़ी होती है। बहुत से लोग तुलसी की पूजा करते हैं और उसे अपने घर के आँगन में या मंदिर में लगाकर उसका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। तुलसी की पूजा से हमें मानवीय संबंधों में सत्य, प्रेम और शांति की भावना प्राप्त होती है।

|| तुलसी माता आरती ||

जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

सब योगों से ऊपर,
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥

जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App