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विश्वेश्वर व्रत कथा और व्रत की पूजा विधि

Vishweshwar Vrat Katha Puja Vidhi

ShivaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पवित्र व्रत है। इसकी कथा प्राचीन काल के कुंडा राजा से जुड़ी है, जो बहुत बड़े शिव भक्त थे।

एक बार एक ऋषि ने राजा के राज्य में पवित्र नदी और मंदिर की कमी बताई। इससे दुखी होकर राजा ने राजपाट त्याग दिया और गंगा किनारे जाकर घोर तपस्या की। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनके आग्रह पर राजा के राज्य में ही निवास करने का वरदान दिया, जिससे वह स्थान पवित्र हो गया।

इस व्रत को करने से भक्त को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जीवन के संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि मिलती है। यह व्रत विशेष रूप से कार्तिक मास में मनाया जाता है।

|| विश्वेश्वर व्रत की पूजा विधि ||

  • इस दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद भगवान शिव के मंदिर जाएं और शिवलिंग पर जल, दूध, मिठाई और फल अर्पित करें।
  • भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करें और पूरे दिन उपवास रखें।
  • अगले दिन सुबह सात्विक भोजन ग्रहण करके व्रत खोलें।
  • इस व्रत को करने से सभी कष्टों का नाश होता है, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, और भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

|| विश्वेश्वर व्रत कथा (Vishweshwar Vrat Katha PDF) ||

बहुत समय पहले कुथार राजवंश में एक शूद्र राजा थे, जिन्हें कुंडा राजा के नाम से जाना जाता था। एक समय राजा ने भार्गव मुनि को अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया, परंतु मुनि ने निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। मुनि ने कहा कि राजा के राज्य में मंदिरों और पवित्र नदियों का अभाव है, और उन्हें कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के त्योहार के तीसरे दिन पूजा के लिए उपयुक्त स्थान चाहिए था, जो उन्हें राजा कुंडा के राज्य में नहीं मिला।

राजा कुंडा इस बात से बहुत चिंतित हुए। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अपना राज्य सहायक के हवाले कर दिया और गंगा किनारे तपस्या करने चले गए। उन्होंने वहां एक महान यज्ञ का आयोजन कर भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वरदान मांगने को कहा। राजा ने शिव से उनके राज्य में रहने की इच्छा प्रकट की, जिसे भगवान भोलेनाथ ने स्वीकार कर लिया।

भगवान शिव राजा कुंडा के राज्य में एक कंद के वृक्ष में निवास करने लगे। एक दिन एक आदिवासी स्त्री जंगल में अपने खोए हुए पुत्र को ढूंढ रही थी और उसी कंद के वृक्ष के पास पहुंचकर उसने तलवार से प्रहार किया। उस वृक्ष से खून बहने लगा, जिसे देखकर वह समझी कि वही उसका पुत्र है और वह “येलु, येलु” पुकारते हुए रोने लगी। तभी भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए और तब से इस स्थान का नाम येलुरु विश्वेश्वर मंदिर पड़ गया।

उस स्त्री के प्रहार से शिवलिंग पर एक निशान बन गया था, जो आज भी येलुरु श्री विश्वेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि राजा कुंडा ने उस स्थान पर नारियल पानी डालकर कंद से खून का बहना बंद किया था। इसलिए, यहां भगवान शिव को नारियल पानी या नारियल का तेल चढ़ाने की परंपरा है। मंदिर में चढ़ाया गया तेल दीपक जलाने में भी काम आता है।

यह थी भगवान भोलेनाथ को समर्पित विश्वेश्वर व्रत की संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है, यह लेख भगवान शिव की आराधना और व्रत के अनुष्ठान में आपके लिए लाभकारी होगा। ऐसे ही अन्य पर्व, उत्सव और त्योहारों की जानकारी के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।

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