|| बुध त्रयोदशी व्रत कथा ||
एक समय की बात है, नैमिषारण्य तीर्थ में अनेक ऋषियों ने सूत जी महाराज से निवेदन किया, “हे भगवन्! कृपया हमें प्रदोष व्रतों में श्रेष्ठ बुध प्रदोष व्रत के विषय में विस्तार से बताएं।”
सूत जी बोले — “हे मुनिगण! आप सभी ध्यानपूर्वक सुनिए, मैं आपको बुध त्रयोदशी व्रत की एक पावन कथा सुनाता हूँ, जो अत्यंत फलदायक और कल्याणकारी है।”
प्राचीन काल की बात है, एक युवक का अभी-अभी विवाह हुआ था। विवाह के पश्चात, गौना होने के बाद वह अपनी पत्नी को लेने पुनः अपने ससुराल गया। जब वह सास-ससुर से विदा की बात करने लगा, तो उसने स्पष्ट कहा कि वह बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को लेकर अपने नगर लौटेगा।
सास-ससुर, साथ ही घर के अन्य सदस्य साले-सालियाँ सभी ने उसे समझाया कि बुधवार के दिन विदा करना शुभ नहीं होता। परंतु वह युवक अपनी ज़िद पर अड़ा रहा और किसी की बात न मानते हुए बुधवार को ही पत्नी को विदा करवा लिया।
पति-पत्नी बैलगाड़ी में सवार होकर घर लौट रहे थे। नगर की सीमा से बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति पास के जलस्रोत से पानी लेने लोटा लेकर गया। जब वह पानी लेकर लौटा, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष द्वारा लाए गए लोटे से पानी पी रही है और हँस-हँस कर उससे बातें कर रही है।
यह दृश्य देखकर वह क्रोधित हो उठा और उस व्यक्ति से झगड़ने लगा। किंतु तभी उसे गहरा आश्चर्य हुआ—क्योंकि वह व्यक्ति बिल्कुल उसी के समान दिखाई दे रहा था, मानो उसका हमशक्ल हो!
जब दोनों हमशक्ल पुरुष आपस में झगड़ने लगे, तो राह चलते लोग वहाँ एकत्र हो गए। वहाँ उपस्थित एक सिपाही ने स्त्री से पूछा, “इन दोनों में से तुम्हारा पति कौन है?” लेकिन वह स्त्री असमंजस में पड़ गई, क्योंकि दोनों की शक्ल-सूरत, हावभाव और वस्त्र एक जैसे थे।
बीच मार्ग में ऐसी विपत्ति और पत्नी को असहाय देखकर वह युवक व्याकुल हो गया। उसके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। वह हाथ जोड़कर भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा, “हे भोलेनाथ! मुझसे बड़ी भूल हो गई जो मैंने बुधवार के दिन विदा कराया। कृपया मेरी और मेरी पत्नी की रक्षा करें। भविष्य में मैं कभी ऐसा कृत्य नहीं करूंगा।”
उसकी करुण पुकार सुनकर भगवान शंकर प्रसन्न हुए और कृपा करके उस नकली पुरुष को अंतर्ध्यान कर दिया। इसके बाद पति-पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए।
उस दिन से उन्होंने श्रद्धापूर्वक और नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी (बुध प्रदोष) व्रत का पालन करना आरंभ कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें इस लोक में सभी सुख प्राप्त हुए और अंततः शिवलोक को प्राप्त हुए।
।। इति श्री बुध त्रयोदशी व्रत कथा संपूर्णम्।।
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