अंदल जयंती, जिसे आदिपुरम भी कहते हैं, देवी अंदल को समर्पित है। अंदल को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है और यह त्योहार उनके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उनकी कथा दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है।
|| अंदल जयंती की कथा (Andal Jayanti Katha PDF) ||
लगभग 10वीं शताब्दी में, तमिलनाडु में पेरियालवार नामक भगवान विष्णु के एक परम भक्त रहते थे। वे श्रीरंगम मंदिर में भगवान विष्णु के लिए प्रतिदिन अपने हाथों से सुंदर मालाएं बनाते थे। पेरियालवार संतानहीन थे और उन्हें एक संतान की बहुत चाह थी।
एक दिन, जब वे मंदिर के बगीचे में तुलसी के पौधे की देखभाल कर रहे थे, तो उन्हें एक सुंदर कन्या मिली। उन्होंने इसे भगवान की कृपा माना और उसे अपनी संतान के रूप में अपना लिया। उन्होंने उस कन्या का नाम कोदई रखा, जो बाद में अंदल के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
अंदल बचपन से ही भगवान विष्णु की प्रबल भक्त थीं। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वह हर समय श्रीहरि की भक्ति में डूबी रहती थीं। वह अपने पिता द्वारा भगवान के लिए बनाई गई माला को, भगवान को अर्पित करने से पहले, स्वयं पहनकर देखती थीं। उनका मानना था कि अगर माला उनके द्वारा पहनी गई है, तो वह भगवान को और भी प्रिय लगेगी।
एक दिन पेरियालवार ने अंदल को ऐसा करते देख लिया। उन्हें लगा कि यह भगवान का अपमान है, क्योंकि अंदल ने अपवित्र माला भगवान को चढ़ाने की कोशिश की थी। वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने अंदल को ऐसा करने से मना किया। उस रात, भगवान विष्णु ने पेरियालवार को सपने में दर्शन दिए और उनसे कहा कि उन्हें वही माला स्वीकार है, जिसे अंदल ने पहले पहना हो। भगवान ने बताया कि अंदल की भक्ति इतनी पवित्र है कि उनके द्वारा पहनी गई माला ही उन्हें सबसे अधिक प्रिय है।
इस घटना के बाद से, अंदल प्रतिदिन पहले माला स्वयं पहनती थीं और फिर उसे भगवान विष्णु को अर्पित करती थीं। इसी वजह से अंदल को “चूडिकोडुत्था सुदरकोडी” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “वह स्त्री जिसने माला धारण करके भगवान को दी।”
जैसे-जैसे अंदल बड़ी होती गईं, उनकी भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और भी गहरी होती गई। उन्होंने भगवान रंगनाथ (विष्णु का एक रूप) को ही अपना पति मान लिया और किसी और से विवाह करने से इनकार कर दिया। उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति में अनेक धार्मिक रचनाएँ लिखीं, जिनमें “थिरुप्पवाई” और “नाच्सियर तिरुमोली” प्रमुख हैं।
कथाओं के अनुसार, जब अंदल लगभग 15 वर्ष की थीं, तो कुछ लोग उनके पिता के पास आए और बताया कि भगवान रंगनाथ ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया है कि अंदल को दुल्हन के रूप में श्रीरंगम मंदिर लाया जाए। जब अंदल दुल्हन के रूप में श्रीरंगम मंदिर पहुंचीं, तो वे एक तेज प्रकाश में बदल गईं और भगवान विष्णु की प्रतिमा में विलीन हो गईं। इस प्रकार, अंदल ने अपने प्रिय भगवान से एकाकार प्राप्त कर लिया।
अंदल जयंती पर, विशेष रूप से दक्षिण भारत के वैष्णव मंदिरों में, दस दिनों का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें देवी अंदल और भगवान रंगनाथ के विवाह का उत्सव होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से अविवाहित लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है।
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