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गुरु गीता (Guru Gita)

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गुरु गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो शिव पुराण का हिस्सा मानी जाती है। इसमें भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को गुरु की महिमा और महत्व के बारे में उपदेश दिया गया है। यह ग्रंथ गुरु-शिष्य परंपरा को समर्पित है और इसमें गुरु के महत्व, गुरु की उपासना और गुरु के ज्ञान की महिमा का वर्णन किया गया है।

गुरु गीता का मुख्य विषय गुरु और शिष्य के संबंध को समझाना है। भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रश्नों के उत्तर में बताया कि गुरु का स्थान संसार में सर्वोच्च है और गुरु के बिना कोई भी व्यक्ति मोक्ष या आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। यह ग्रंथ भक्तों और साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें गुरु की कृपा और उनके ज्ञान को प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

गुरु गीता के प्रमुख विषय

  • गुरु गीता में बताया गया है कि गुरु वह है, जो शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के समान माना जाता है। गुरु की कृपा से ही शिष्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
  • गुरु गीता में गुरु की उपासना के महत्व का वर्णन किया गया है। गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि गुरु ही शिष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। इसमें कहा गया है कि गुरु की सेवा और भक्ति से ही शिष्य अपने जीवन का उद्धार कर सकता है।
  • इस ग्रंथ में गुरु-शिष्य के संबंध को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। शिष्य को अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण, श्रद्धा और भक्ति रखनी चाहिए। गुरु के वचनों का पालन करना ही शिष्य की सबसे बड़ी साधना है।
  • गुरु गीता में गुरु की कृपा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। यह कहा गया है कि गुरु की कृपा से ही शिष्य को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करना असंभव है, इसलिए गुरु का मार्गदर्शन और उनका आशीर्वाद शिष्य के जीवन का आधार होता है।
  • गुरु गीता में गुरु मंत्र का भी विशेष महत्व है। यह कहा गया है कि गुरु द्वारा दिया गया मंत्र साधक को आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। इस मंत्र का जाप करने से साधक को आंतरिक शांति और दिव्यता की प्राप्ति होती है।

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