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Mahesh Navami 2025 – जानिए शिव-पार्वती की आराधना का विशेष दिन, महेश नवमी का रहस्य और इसकी महिमा

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हिंदू धर्म में अनेक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से हर एक का अपना विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है महेश नवमी। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है और विशेष रूप से माहेश्वरी समाज द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं 2025 में महेश नवमी कब है, इसका महत्व, पूजा विधि, और इससे जुड़े रहस्य एवं महिमा के बारे में।

महेश नवमी 2025 कब है?

महेश नवमी का पर्व हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। साल 2025 में, महेश नवमी 4 जून 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।

महेश नवमी का रहस्य और इसका ऐतिहासिक महत्व

महेश नवमी का संबंध माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति से माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय ऐसा आया जब माहेश्वरी समाज के पूर्वजों को श्राप के कारण अपने धर्म और पहचान से वंचित होना पड़ा। इस संकट से उबरने और पुनः भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पुनः अपना धर्म और पहचान प्रदान की। माना जाता है कि यह घटना ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, तभी से इस दिन को महेश नवमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन माहेश्वरी समाज के लिए एक पुनर्जन्म और नव-आरंभ का प्रतीक है।

महेश नवमी की महिमा और धार्मिक महत्व

महेश नवमी का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होते हैं। माना जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती की आराधना करने से:

  • दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  • जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति की कामना होती है, उन्हें इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से लाभ होता है।
  • व्यापार और व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए यह दिन विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव को व्यापार का संरक्षक भी माना जाता है।
  • शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह पर्व मोक्ष की ओर भी अग्रसर करता है।

महेश नवमी की पूजा विधि

महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। यहाँ एक सामान्य पूजा विधि दी गई है:

  • महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर या पूजा स्थान को साफ करें। गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
  • भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। पूजा का संकल्प लें।
  • भगवान शिव का जलाभिषेक करें। उन्हें दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराएं।
  • भगवान शिव और माता पार्वती को नए वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, कनेर के फूल, शमी के पत्ते और अन्य मौसमी फूल अर्पित करें। माता पार्वती को लाल फूल विशेष रूप से अर्पित करें।
  • धूप और दीपक जलाएं। भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेल और मिठाई का भोग लगाएं। माता पार्वती को फल और मिठाई अर्पित करें।
  • “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ शिवाय नमः” मंत्र का जाप करें। शिव तांडव स्तोत्र या महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
  • भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
  • पूजा के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों और मित्रों में वितरित करें।

महेश नवमी के दिन विशेष कार्य

  • इस दिन मंदिरों में भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • संभव हो तो रुद्राभिषेक कराएं। ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं या दान-दक्षिणा दें।
  • शिव चालीसा और शिव स्तुति का पाठ करें।
  • माहेश्वरी समाज के लोग इस दिन शोभायात्राएं निकालते हैं और सामूहिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

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