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Bhairava

श्री काल भैरव अष्टमी व्रत कथा

Shri Kaal Bhairav Ashtami Vrat Katha Hindi

BhairavaPooja Vidhi (पूजा विधि)हिन्दी
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|| काल भैरव की पूजा विधि ||

  • इस दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ हो जाएं।
  • एक लकड़ी के पाट पर सबसे पहले शिव और पार्वतीजी के चित्र को स्थापित करें। फिर काल भैरव के चित्र को स्थापित करें।
  • जल का छिड़काव करने के बाद सभी को गुलाब के फूलों का हार पहनाएं या फूल चढ़ाएं।
  • अब चौमुखी दीपक जलाएं और साथ ही गुग्गल की धूप जलाएं।
  • कंकू, हल्दी से सभी को तिलक लगाकर हाथ में गंगा जल लेकर अब व्रत करने का संकल्प लें।
  • अब शिव और पार्वतीजी का पूजन करें और उनकी आरती उतारें।
  • फिर भगवान भैरव का पूजन करें और उनकी आरती उतारें।
  • इस दौरान शिव चालीसा और भैरव चालीसा पढ़ें।
  • ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः का जाप करें। इसके उपरान्त काल भैरव की आराधना करें।
  • अब पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें।
  • व्रत के सम्पूर्ण होने के बाद काले कुत्‍ते को मीठी रोटियां खिलाएं या कच्चा दूध पिलाएं।
  • अंत में श्वान का पूजन भी किया जाता है।
  • अर्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें।
  • इस दिन लोग व्रत रखकर रात्रि में भजनों के जरिए उनकी महिमा भी गाते हैं।

|| काल भैरव अष्टमी व्रत कथा ||

एक बार त्रिदेव, ब्रह्मा विष्णु एवम महेश तीनो में कौन श्रेष्ठ इस बात पर लड़ाई चल रही थी|

इस बात पर बहस बढ़ती ही चली गई, जिसके बाद सभी देवी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई| यहाँ सबसे यही पुछा गया कि कौन ज्यादा श्रेष्ठ है|

सभी ने विचार विमर्श कर इस बात का उत्तर खोजा, जिस बात का समर्थन शिव एवं विष्णु ने तो किया लेकिन तब ही ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को अपशब्द बोल दिया, जिससे भगवान शिव को बहुत क्रोधित हुए तथा उनके शरीर से छाया के रूप में काल भैरव की उत्पत्ति हुई । मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी।

क्रोध से उत्पन्न काल भैरव जी ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी का सिर काट दिया। इसके बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव तीनों लोकों में घूमें परन्तु कही भी उन्हें शांति नहीं मिली, अंत में घूमते हुए वह काशी पहुंचे जहां उन्हें शांति प्राप्त हुई।

वहां एक भविष्यवाणी हुई जिसमें भैरव बाबा को काशी का कोतवाल बनाया गया तथा वहां रहकर लोगों को उनके पापों से मुक्ति दिलाने के लिए वहां बसने को कहा गया ! व् शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।

इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य अपनी सीमाएं पार कर रहा था।

यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव के ऊपर हमला करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई ।

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