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महेश नवमी व्रत कथा

Mahesh Navami Vrat Katha

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| महेश नवमी व्रत कथा ||

एक समय की बात है जब राजा खडगलसेन शासन कर रहे थे। उनके पास कोई संतान नहीं थी। वे पुत्रकामेष्टी यज्ञ करने के बाद पुत्र की प्राप्ति के लिए उत्सुक थे, जिससे उन्हें एक पुत्र सुजान बच्चा हुआ।

ऋषियों ने उन्हें चेतावनी दी कि उनके पुत्र को 20 वर्ष तक उत्तर दिशा में नहीं जाने दें। एक दिन, राजकुमार शिकार करने उत्तर दिशा में गये, जहाँ उन्होंने सूरज कुण्ड के पास ऋषियों को यज्ञ करते हुए देखा।

उन्हें यह दृश्य देखकर क्रोध आया और उन्होंने अपने सैनिकों से उनके यज्ञ में विघ्न डालने के लिए कहा। इससे ऋषियों ने उन पर श्राप दिया, जिससे राजकुमार और उनके सभी सैनिक पत्थर बन गए।

यह समाचार सुनकर राजा खडगलसेन की मृत्यु हो गई और उनकी सभी रानियां विधवा हो गईं। राजकुमार की पत्नी चंद्रावती दूसरे सैनिकों की पत्नियों के साथ ऋषियों के पास गईं और उनसे क्षमा मांगी।

ऋषियों ने उन्हें उमापति भगवान शिव की पूजा करने को कहा। रानी चंद्रावती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषियों के श्राप को निष्फल कर दिया और उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया।

राजकुमार सुजान ने सभी सैनिकों के साथ क्षत्रिय धर्म को त्याग दिया और व्यापार में लग गए। वे भगवान शिव के नाम पर माहेश्वरी कहलाने लगे। इसी से माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का पर्व मनाया जाने लगा।

महेश नवमी माहेश्वरी समाज का मुख्य पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के आशीर्वाद से माहेश्वरी समाज की स्थापना हुई थी।

इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तों का विश्वास है कि पूरी श्रद्धा और निष्ठा से इस व्रत को करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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