|| आरती ||
आरती पवन दुलारे की,
भक्त भय तारणहारे की ||
दोऊ कर चरण शीश नाऊँ,
दास प्रभु तुम्हरो कहलाऊँ,
जो आज्ञा तुम्हरी मैं पाऊँ,
प्रेम से राम चरित गाऊँ |
पार मेरा बेड़ा कर दीजो,
शीश चरणों में रख लीजो |
श्रष्टि सब करण,
जाऊं बलि चरण,
लाज रख लीजो भक्तन की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
शीश पर राम तिलक सोहे,
मुकुट मणि मानक मन मोहे,
शब्द मुख राम नाम सोहे,
जिसे सुन सकल विश्व मोहे |
तेल सिंदूर बदन लागा,
नाम सुन काल दूर भागा |
देह विकराल, गले बिच माल,
पवन सम भयंकर,
हे मतवारे की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
समुद्र को कूद गए क्षण में,
जा पहुंचे अशोक उपवन में,
माताजी कर रही सोच मन में,
मुद्रिका डाल दई पल में |
उजाड़ा बाग़, लगा दी आग,
दुष्ट गए भाग |
क्षार कर दिनी लंकन की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
लंका को जला चले आए,
खबर सीता माँ की ले आए,
राम जी के ह्रदय अति भाए,
माँ अंजनी सुत तुम कहलाए |
हरि गुण कहाँ तलक गाऊं,
पार वेदों में नहीं पाऊं,
धरे जो ध्यान, मिले भगवान,
सिद्ध होय सब काम |
दीजिए भक्ति चरणन की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
बाण जब लक्ष्मण को लागा,
अगन सम आप तुरत भागा,
बड़े बलवीर चले आगे,
निशाचर बहुत मिले आगे |
उठा पर्वत को चल दिना,
के बूटी लक्ष्मण मुख दिना,
राम पद रज मस्तक लीना,
सकल कपीश प्राण लीना |
बड़े दातार, जगत उद्धार,
भजे संसार,
भक्त को भोग दिवईया की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
चोला लाल लाल राजे,
मुष्टिका गदा हाथ साजे,
की कर में पर्वत छवि राजे,
राम जी को धर काँधे लाए,
कोपीन पर कटी अंग सोहे,
देख श्री जगन्नाथ मोहे |
रखो प्रभु लाज, गरीब निवाज,
करो सिद्ध काज,
काढ़ दो फांसी भक्तन की,
आरती पवन दुलारें की,
भक्त भय तारणहारे की ||
आरती पवन दुलारे की,
भक्त भय तारणहारे की ||
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