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Lakshmi Ji

जानिए माता लक्ष्मी की अद्भुत कहानी, रहस्य, कथाएं और अनदेखे पहलू

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देवी लक्ष्मी, धन, समृद्धि, वैभव और सौभाग्य की देवी हैं। हिंदू धर्म में उनका विशेष स्थान है और उनकी पूजा व्यापक रूप से की जाती है। देवी लक्ष्मी की पूजा अनेक अवसरों पर की जाती है, विशेष रूप से दीपावली, धनतेरस और विजयादशमी के दिन। उनकी पूजा के लिए श्री लक्ष्मी सूक्त, लक्ष्मी चालीसा और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

देवी लक्ष्मी को अत्यंत सुंदर रूपवती माना जाता है। वे सोने के रंग की हैं और चार भुजाएं धारण करती हैं। उनके हाथों में कमल का फूल, कलश, स्वर्णाभरण और वरमुद्रा होती हैं। वे अक्सर कमल के फूल पर विराजमान या हंस या हाथी पर सवार चित्रित की जाती हैं।

देवी लक्ष्मी: जन्म, स्वरूप और महत्व

  • देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था।
  • समुद्र मंथन से भी देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी, जिसे धन और समृद्धि की देवी माना जाता है।
  • कुछ मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी सोने का प्रतीक हैं, जबकि कुछ उन्हें देवी मानते हैं।
  • विष्णुपुराण के अनुसार, देवी लक्ष्मी ऋषि भृगु और ख्याति की पुत्री हैं।
  • कुछ ग्रंथों में इन्हें समुद्र और पृथ्वी की पुत्री भी बताया गया है।
  • चार हाथों वाली देवी लक्ष्मी को श्री और लक्ष्मी रूप में जाना जाता है।
  • श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान रहती हैं, जबकि लक्ष्मीरूप में वे भगवान विष्णु के साथ रहती हैं।
  • उनके हाथों में अमृत कलश, स्वर्ण कमल, सुनहरा सिक्का, और अभय मुद्रा होती है।
  • उनका वाहन उल्लू और हाथी माना जाता है।
  • देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, ऐश्वर्य, सौभाग्य, शांति, और विष्णुप्रिया देवी के रूप में पूजा जाता है।
  • दीपावली का त्यौहार देवी लक्ष्मी को समर्पित है।
  • माता लक्ष्मी की पूजा शुक्रवार को विशेष रूप से की जाती है।

देवी लक्ष्मी मंत्र

    • ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः।।
    • ॐ महालक्ष्म्यै नमः।।
    • ॐ श्रीं लक्ष्मी नारायणाय नमः
    • ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
    • ॐ कमलवासिन्यै नमः

अष्टलक्ष्मी: धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवियां

अष्टलक्ष्मी देवी लक्ष्मी के आठ रूपों को दर्शाती हैं, जो विभिन्न प्रकार के धन, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक हैं। इन आठ रूपों में शामिल हैं

  1. आदिलक्ष्मी: आदिदेवी, सृष्टि की देवी, सभी प्रकार के धन और समृद्धि की दाता।
  2. धनलक्ष्मी: धन और संपदा की देवी, भौतिक समृद्धि और वैभव प्रदान करती हैं। धनलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।
  3. धान्यलक्ष्मी: अन्नपूर्णा, फसलों और कृषि की देवी, खाद्य सुरक्षा और पोषण प्रदान करती हैं।
  4. गजलक्ष्मी: विजय और शक्ति की देवी, हाथी पर सवार, विजय और सफलता प्रदान करती हैं। गजलक्ष्मी व्रत कथा यहां जानें।
  5. सन्तानलक्ष्मी: पुत्र और पौत्र प्रदान करने वाली देवी, संतान सुख और उत्तराधिकार प्रदान करती हैं।
  6. वीरलक्ष्मी: साहस और पराक्रम की देवी, साहस, शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं।
  7. विजयलक्ष्मी: विजय और जय की देवी, सभी प्रयासों में सफलता और विजय प्रदान करती हैं।
  8. विद्यालक्ष्मी: ज्ञान और शिक्षा की देवी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान प्रदान करती हैं।

देवी लक्ष्मी के प्रिय भोग

  • मखाना
  • सिंघाड़ा
  • बताशे
  • ईख
  • हलुआ
  • खीर
  • अनार
  • पान
  • सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न
  • केसर-भात

माता लक्ष्मी के प्रमुख मंदिर

  • पद्मावती मंदिर, तिरुचुरा
  • लक्ष्मीनारायण मंदिर, वेल्लूर
  • महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई
  • लक्ष्मीनारायण मंदिर, दिल्ली
  • लक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुर
  • अष्टलक्ष्मी मंदिर, चेन्नई
  • अष्टलक्ष्मी मंदिर, हैदराबाद
  • लक्ष्मी-कुबेर मंदिर, वडलूर (चेन्नई)
  • लक्ष्मीनारायण मंदिर, जयपुर
  • महालक्ष्मी मंदिर, इंदौर
  • श्रीपुरम् का स्वर्ण मंदिर, तमिलनाडु
  • पचमठा मंदिर, जबलपुर

लक्ष्मी-विष्णु विवाह कथा

एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ। माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णुजी को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे। नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए। विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया। हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजकुमारी ने नारदजी को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। नारदजी वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में उन्होंने अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गए, क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था।

हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया। उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया। नारद सीधे बैकुंठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा।

समुद्र मंथन

समुद्र मंथन हिंदू धर्म की एक प्रसिद्ध कथा है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए युद्ध हुआ था। इस युद्ध में देवताओं की पराजय हुई थी। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वे समुद्र मंथन करें। समुद्र मंथन के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर विशालकाय शेषनाग को रस्सी बनाया और मंदराचल पर्वत को मंथन दंड बनाया।

इस मंथन से अनेक रत्न निकले, जिनमें हलाहल विष, कामधेनु गाय, उच्चै:श्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पद्रुम ग्रंथ, रम्भा नामक अप्सरा, महालक्ष्मी आदि शामिल थे।

देवी लक्ष्मी का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से ही हुआ था। वे समृद्धि और वैभव की देवी हैं। उनका आगमन देवताओं के लिए शुभ संकेत था। भगवान विष्णु ने महालक्ष्मी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

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