Saraswati Maa

नील सरस्वती स्तोत्रम् अर्थ सहित

Neel Saraswati Stotram Arth Sahit Hindi Lyrics

Saraswati MaaStotram (स्तोत्र संग्रह)हिन्दी
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॥ नील सरस्वती स्तोत्र पाठ विधि ॥

प्रतिदिन नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करने से आपको चमत्कारिक अनुभव होंगे। यदि आप देवी सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी के दिन इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

  • सर्वप्रथम स्नान करके स्वच्छ श्वेत या पीले वस्त्र धारण करें।
  • पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पद्मासन में बैठें।
  • अपने सामने लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर देवी सरस्वती की प्रतिमा या छायाचित्र स्थापित करें।
  • देवी सरस्वती का ध्यान एवं आवाहन करें और उन्हें आसन ग्रहण करवाएं।
  • इसके पश्चात उन्हें धूप, दीप, सुगंध, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
  • देवी को बेसन या बूंदी के लड्डू का भोग अर्पित करें।
  • तत्पश्चात पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ समाप्त होने पर देवी सरस्वती की आरती करें और अपने लिए बुद्धि, विद्या तथा ज्ञान की प्रार्थना करें।

॥ श्री नील सरस्वती स्तोत्रम् ॥

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पाप को हरनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अंदर की ओर करनेवाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। हे सृष्टिस्वरुपिणि ! आपको नमस्कार है, मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवि ! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होनेवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारनेवाली हे उग्रतारे ! आपको नित्य नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढ़त्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरणयुगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और जगत को तारनेवाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः।
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा। ॥

अर्थ – जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम्। ॥

अर्थ – इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहनेवाला धन पा जाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क – व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः।
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते। ॥

अर्थ – जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान बुद्धि का उदय हो जाता है।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः। ॥

अर्थ – जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत्। ॥

अर्थ – इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिए।

॥ नील सरस्वती स्तोत्र के लाभ व महत्व ॥

  • सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम का प्रतिदिन पाठ करने से आत्मज्ञान में वृद्धि होती है।
  • जिन छात्रों को पढ़ाई में कठिनाई होती है या परिश्रम के बावजूद परीक्षा में मनचाहे परिणाम नहीं मिलते, उन्हें श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
  • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की मस्तिष्क में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
  • जो लोग कविता, साहित्य, कला, संगीत या अन्य ललित कलाओं के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं या दक्षता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इस स्तोत्र का पूर्ण विधि-विधान से प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।
  • सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम के प्रभाव से साधक सभी प्रकार के ज्ञात और अज्ञात भय से मुक्त हो जाता है।
  • इस स्तोत्र को सुनने से मानसिक समस्याओं का समाधान होता है और मन को शांति प्राप्त होती है।
  • यदि किसी बालक का मानसिक विकास सही ढंग से नहीं हो रहा है या वह अन्य बालकों की तुलना में मानसिक रूप से दुर्बल है, तो इस स्तोत्र के पाठ और श्रवण से उसका मानसिक विकास सुचारु रूप से होने लगता है।

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